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Sunday, March 23, 2025 5:01:35 AM

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न्यायालय को दरकिनार कर मिटा दिया गया 1950 से चला आ रहा इतिहास

न्यायालय को दरकिनार कर मिटा दिया गया 1950 से चला आ रहा इतिहास

( रिपोर्ट : डी0पी0श्रीवास्तव)
बहराइच। अंग्रेजों के जमाने के जेलर भले ही न रह गए हों लेकिन ब्रिटिश काल से ही नगर के मुख्य केंद्र स्थित घंटाघर के उत्तर दिशा में मोहल्ला केवानागंज थाना नगर कोतवाली में स्थित सन् 1950 से चले आ रहे इक्का-तांगा के स्टैंड पर गत दिनों उस समय कहर टूट पड़ा जब मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के बाद भी कानून की दुहाई देने वाले प्रशाशन के द्वारा तांगा स्टैंड को ध्वस्त कर उसका नामों निशान ही मिटा दिया गया। आपको बताते चलें कि यह ऐतिहासिक इक्का-तांगा स्टैंड तब अस्तित्व में आया था जब उक्त स्थल को रियासत नानपारा की बताई जा रही संपत्ति को मामले में वादी के पिता द्वारा 09.03.1950 को 150/-मालिकाना हक़ रियासत नानपारा को अदा करके प्राप्त किया गया था। और तब की जरुरत के हिसाब से मोटर साईकिल व फोर व्हीलर गाड़ियों का स्थान लिए इक्के व तांगे सिर्फ नगर ही नहीं बल्कि इंसानी जरूरतों के हर छेत्र को नापते हुवे नजर आने लगें। जो की तब से लेकर अब तक बदस्तूर जारी रहा। लेकिन स्वामित्वधारी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र वादी स्वामी के रूप में उक्त भूमि पर अध्यासित रह इक्का चालक सेवा समित की ओर से इसका संचालन करवाते रहे। बाउजूद उक्त संपत्ति नपाप के अभिलेखों में इक्का,तांगा व खड़खड़ा स्टैंड के रूप में दर्ज होने के कारण विवाद की स्थित उत्पन्न होते ही मामला सीधे उच्च न्यायालय इलाहबाद की चौखट पर पहुँच कर रिट संख्या 3154/एम्/बी वर्ष 1993 इक्का,तांगा,खड़खड़ा चालाक संघ प्रति म्युनिसिपल बोर्ड के नाम दर्ज नजर आने लगा लेकिन सुनवाई के दौरान वादी द्वारा कोई भी मजबूत पछ न रख पाने के कारण दायर उक्त याचिका को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया। यही नहीं बल्कि उसके बाद भी इक्का,तांगा,खड़खड़ा समिति ने एक और सामान्य वाद संख्या 753/93 के माध्यम से इक्का,तांगा,खड़खड़ा समिति प्रति नगर पालिका बहराइच आदि के नाम से स्थाई निषेधाज्ञा हेतु दायर याचिका सिविल जज (अ0 ख0)बहराइच के न्यायालय में भी सुनवाई के दौरान निरस्त कर दिया गया था। वर्तमान में उक्त वाद सिविल जज (अ0ख0)बहराइच के न्यायालय में भी लंबित है। चूँकि मामला हजारों इक्का,तांगा,खड़खड़ा चालकों से जुड़ा होने के कारण समय समय पर पछ व विपछ के बीच चर्चा का विषय भी बनता रहा। जिस दौरान उक्त भूमि को कब्जाए जाने का प्रयास भी किया जाता रहा। लेकिन चालकों,जन प्राधिनिधियों व समाजसेवियों आदि के पुरजोर विरोध व मामला कोर्ट में लंबित होने के कारण कब्जेदारों द्वारा कानून की दीवार को तोड़ा नहीं जा पा रहा था। हालांकि कमीशन रिपोर्ट में भी मामला नपाप के पाले में ही गोता लगाते हुवे नजर आता रहा। जिसका सबसे बड़ा कारण उक्त भूमि का नपाप के खुशनुमारी रजिस्टर में भूखंड का नंबर 84/2 वा पुराना नंबर 43 अंकित होना और उक्त जमीन के खरीदार व उनके पुत्र का नाम 1950 से लेकर आज तक सरकारी दस्तावेजों में अंकित न होना व भूमि को विवादित बताया जाना रहा। लेकिन इतना सब होने के बाद भी जब मामला कोर्ट में लंबित था और मोहम्मद शरीफ बनाम नगर पालिका,शिव कुमार बनाम नगर पालिका व इक्का-तांगा बनाम नगर पालिका की सुनवाई दिनांक 13.07.2018,18.07.2018व29.07.2018 को लंबित बताई जा रही थी तो आखिर किन परिस्थितियों में सन् 1950 से चले आ रहे मामले में उ0प्र0 में निष्पच्छ कानून का डंका बजाने वाली सरकार के अधीनस्थ लोगों द्वारा सरकार की छवि बिगाड़ने की जरुरत पड़ गई?आखिर वे कौन लोग हैं जो परदे के पीछे रहकर परोछ रूप से सरकार की छवि बिगाड़कर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम कर रहे हैं। क्या ऐसे लोगों को कठोर दंड नहीं दिया जाना चाहिये

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