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Wednesday, April 23, 2025 12:27:49 AM

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क्यो मनाया जाता है गणेश चतुर्थी का त्योहार

क्यो मनाया जाता है गणेश चतुर्थी का त्योहार
से बेखौफ खबर के लिए स्वतंत्र पत्रकार मुनीर आलम(राजन) की रिपोर्ट

महराजगंज। गणेश चतुर्थी का त्योहार क्यो मनाया जाता है और कैसे हुआ गणेश जी का जन्म
सनातन धर्म के त्योहारों में गणेश चतुर्थी एक मुख्य त्योहार है जो भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 22 अगस्त, शनिवार को है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशेष दिन होता है। लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे, इसलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है। पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है। लोक भाषा में इस त्योंहार को डण्डा चौथ भी कहा जाता है ऐसे हुआ गणेश जी का जन्म
गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई।
जब भगवान शिव वहां आए, तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी मां नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गए।
जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं। शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी।
तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, ऐसा ना करने पर आपकी पूजा सफल नही होगी

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